Ajmer का ढाई दिन का झोपड़ा मस्जिद नहीं बल्कि 'जैन मंदिर' था, जानें इसके पीछे की कहानी

03:40 PM May 08, 2024 | Suraj Bunkar

अजमेर न्यूज़ डेस्क, राजस्थान में विश्व हिंदू परिषद के नेताओं और जैन भिक्षुओं ने ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ पर बड़ा दावा किया है। मंगलवार को बड़ी संख्या में जैन भिक्षुओं और नेता मौके पर पहुंचे थे। यहीं पर इस स्मारक के पहले संस्कृत स्कूल होने की बात कही गई। साथ ही दावा किया गया कि स्कूल से पहले यहीं पर जैन मंदिर था। इससे पहले सुनील सागर महाराज के नेतृत्व में ये भिक्षु अजमेर के फवारा सर्किल से दरगाह बाजार होते हुए स्मारक पहुंचे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण वाले इस स्मारक ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ को लेकर इस दावे और जैन भिक्षुओं के भ्रमण से अजमेर शहर में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। इसे लेकर अजमेर नगर निगम के उप महापौर नीरज जैन ने कहा कि जैन भिक्षुओं का मानना है कि वहां संस्कृत विद्यालय से पहले एक जैन मंदिर था।

मंदिर या मस्जिद या स्कूल, क्या क्या दावा

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि पहले ये यहां अढ़ाई दिन का झोपड़ा की जगह बहुत बड़ा संस्कृत कॉलेज हुआ करता था। इस कॉलेज में सभी विषय संस्कृत में ही पढ़ाए जाते थे। इसके अस्तित्व की बात 1192 ईसवीं में बताई जाती है। यह वही दौर था जब अफगान शासक मोहम्मद गोरी ने भारत पर हमला किया और घूमते हुए वो इस इलाके से गुजरा। गोरी ने अपने अजमेर इलाके में होने के दौरान ही अपने सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक का आदेश दिया था कि संस्कृत कॉलेज को हटाकर उसकी जगह मस्जिद बनवा दी जाए।

मस्जिद में 'मंत्रोच्चारण' से सुर्खियों में आया अजमेर का 'ढाई दिन का झोपड़ा', तस्वीरों संग पढ़ें पूरा मामला
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अमूमन किसी भव्य और ऐतिहासिक इमारत को बनने में कई साल लग जाते हैं लेकिन अजमेर में बनी यह ऐतिहासिक इमारत केवल 60 घंटे यानी ढाई दिन में बनी है। यह इमारत भारतीय मुस्लिम वास्तुकला का नायाब नमूना है। इस इमारत के प्रत्येक कोने में चक्राकार और बांसुरी के आकार की मीनारे निर्मित है। इसका निर्माण 1194 ईस्वी में किया गया। अफगान के सेनापति मोहम्मद गौरी के आदेश पर उनके गवर्नर कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसका निर्माण कराया था।

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इतिहासकारों के मुताबिक मोहम्मद गौरी ने तराईन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था। बाद में मोहम्मद गौरी की सेना ने पृथ्वीराज की राजधानी तारागढ़ अजमेर पर हमला किया था। उन्हीं दिनों अजमेर के संस्कृत विद्यालय को ध्वस्त करके उसे मस्जिद के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। संस्कृत महाविद्यालय पर हुए मस्जिद निर्माण के सबूत इस ढाई दिन के झोपड़े पर आज भी देखे जा सकते हैं। झोंपड़े के मुख्य द्वार पर लगे एक शिलालेख में यहां विद्यालय होने का उल्लेख किया गया है। इस मस्जिद यानी ढाई दिन के झोंपड़ के खंभे पुराने हैं जिसकी नक्काशी कहीं से भी इस्लामिक नहीं लग रही जबकि नई बनाई गई दीवारों पर कुरान का आयतें लिखी है।

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ढाई दिन का यह झोंपड़ा अंदर से मंदिर की तरह दिखता है। मंदिर के तरह ही खंभे हैं और उनके ऊपर बना गुबंद भी मंदिर के जैसा ही प्रतीत होता है। जब इसे मस्जिद का रूप दिया गया तो खंभों को यथावत रखा गया और थोड़ा जीर्णोद्धार करके इसे नया रूप दिया गया। बाहर से इसे ऐसा रूप दिया गया है जिससे यह इमारत मस्जिद जैसी नजर आती है। बताया जाता है कि मुस्लिम शासक मुहम्मद गौरी बड़ा क्रूर था। वह भारत में इस्लामिक शासन स्थापित करना चाहता था। जहां भी उसे मंदिर दिखाई देते, वह उसे तुड़वा कर उसे मजहबी ढांचे में खड़ा़ करवा देता था।

जयपुर के बीजेपी सांसद रामचरण बोहरा ने ढाई दिन के झोपड़े को लेकर एक बयान दिया है। 8 जनवरी को जयपुर में राजस्थान यूनिवर्सिटी के स्थापना दिवस पर बोहरा ने कहा था कि अब वह दिन दूर नहीं जब अजमेर के ढाई दिन के झोपड़े में भी संस्कृत के मंत्रों का पाठ किया जाएगा। इस बयान के बाद पूरे प्रदेश में चर्चाओं का बाजार गर्म है।

अढ़ाई दिन का झोपड़ा केवल एक झुग्गी नहीं बल्कि एक महल

स्मारक के निरीक्षण के दौरान जैन साधुओं और उनके अनुयायियों ने मस्जिद के मुख्य केंद्र में प्रवेश करने से परहेज किया। मुनि सुनील सागर ने स्मारक पर एक पत्थर के मंच पर बैठकर दस मिनट का भाषण दिया। उन्होंने कहा आज, मैंने अढ़ाई दिन का झोपड़ा देखा और पाया कि यह केवल एक झुग्गी नहीं बल्कि एक महल है। मैंने रामायण और महाभारत के कई प्रतीकों को देखा। मुझे हिंदू धर्म की टूटी हुई मूर्तियां भी मिलीं, फिर भी विडंबना यह है कि इसे मस्जिद कहा जाता है। हमने पहले भी मांग की है कि स्मारक का पुनर्विकास किया जाए और इसके पुराने गौरव को बहाल किया जाना चाहिए। स्मारक में मूर्तियां हैं जिन्हें स्टोर रूम में रखा गया है।

पुरातत्व विभाग का कहता है?

उधर, एएसआई की वेबसाइट के अनुसार यह स्मारक दिल्ली के पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 1199 ईस्वी में बनवाई गई मस्जिद है जो दिल्ली की कुतुब मीनार परिसर में बनी दूसरी मस्जिद के समकालीन है। हालांकि विभाग ने सुरक्षा उद्देश्यों के लिए परिसर के बरामदे में बड़ी संख्या में मंदिरों की मूर्तियां रखी हैं, जो लगभग 11वीं-12वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान इसके आसपास एक हिंदू मंदिर के अस्तित्व को दर्शाती हैं। यहां अढ़ाई दिनों तक मेला लगता था जिसके कारण ही संभवत: मंदिरों के खंडित अवशेषों से निर्मित इस मस्जिद को 'अढाई दिन का झोपड़ा' के नाम से जाना जाता है।